अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित टाम्पा में पाकिस्तानी आर्मी चीफ फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने फिर एक धमकी भरा बयान दिया है। हालांकि उस पर भारत ने पलटवार करते हुए दो टूक कह दिया है कि किसी भी न्यूक्लियर ब्लैकमेल के प्रभाव में नहीं आएंगे। दरअसल, फ्लोरिडा में पाकिस्तानी प्रवासियों को संबोधित करते हुए मुनीर ने कथित तौर पर परमाणु हमले की धमकी देते हुए कहा था कि भविष्य में भारत के साथ युद्ध में उनके देश के अस्तित्व को खतरा हो सकता है। हम एक परमाणु संपन्न राष्ट्र है। अगर हमें लगता है कि हम नीचे जा रहे है, तो हम अपने साथ आधी दुनिया को भी नीचे ले जाएंगे।
इससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर ने जिस तरह से खुलेआम परमाणु युद्ध की धमकी दी है, उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इससे भारत की यह चिंता पुष्ट होती है कि पाकिस्तान के पास एटॉमिक पावर होना पूरी दुनिया के लिए खतरा है। इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा है कि परमाणु हथियारों की धमकी देना पाकिस्तान की पुरानी रणनीति रही है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ऐसे बयानों के गैर जिम्मेदाराना रवैये को समझ सकता है। बयान में इस बात पर भी खेद जताया गया है कि ये टिप्पणी किसी तीसरे मित्र देश की धरती से की गई है।
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इसलिए मेरी स्पष्ट राय है कि पाकिस्तान के साथ भारत को भी वही सुलूक करना चाहिए, जैसा कि इजरायल ने पिछले महीनों में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के साथ किया था। चूंकि मुनीर इस समय अमेरिका के दौरे पर हैं। इसलिए उनकी इस क्षुद्र बयानबाजी के पीछे अमेरिकी हाथ से इंकार नहीं किया जा सकता है। रही बात इस्लामिक देशों के शह की तो उन्हें भी उसी परमाणु बम से मिट्टी में मिलाया जा सकता है, जिसकी धमकी बार-बार इंग्लैंड-अमेरिका का ‘नाजायज औलाद’ पाकिस्तान अक्सर देता आया है, यह बात उन्हें भी याद रखनी चाहिए। ऐसा करके भारत उनका सारा सांप्रदायिक भूत उतार सकता है। दरअसल मरता क्या नहीं करता वाली बात समान रूप से भारत पर भी लागू होती है।
काबिलेगौर है कि रूस-भारत की पारस्परिक समझदारी से परेशान अमेरिका की धरती से पहली बार किसी ने किसी तीसरे देश के लिए इस तरह धमकी भरे शब्दों का इस्तेमाल किया है। ऐसा इसलिए कि अंतरराष्ट्रीय जगत को युद्धोन्माद की आड़ में हथियार व गोला-बारूद का निर्यात करने वाले अमेरिका को इसमें मजा आता है। हालांकि, अब जो भारत से उसे कड़ी टक्कर मिल रही है, उससे उसके हरामखोर मंसूबे पर पानी फिरता नजर आ रहा है। चूंकि पाकिस्तान के जन्म से 9/11 तक भारत विरोधी तमाम पाकिस्तानी कार्रवाइयों का प्रोत्साहक अमेरिका ही रहा है। लिहाजा मुनीर के बयान को भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।
मसलन, पहले लक्षित पहलगाम साम्प्रदायिक आतंकी हमला, फिर ऑपरेशन सिंदूर से अमेरिकी तिलमिलाहट और अब नई धमकी का लब्बोलुआब यह है कि वियतनाम से लेकर लीबिया तक पिट चुके अमेरिका ने विगत 4 वर्षों से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की तरह ही भारत-पाकिस्तान युद्ध और चीन-ताइवान युद्ध जैसा नया मोर्चा खोलने के सपने देख रहा है, ताकि रूस, भारत, चीन (आरआईसी) की अंतरराष्ट्रीय बर्बादी सुनिश्चित हो और अमेरिका-यूरोप की एशियाई बादशाहत बरकरार रहे।
तभी तो यह पहली बार है कि जब किसी सेना प्रमुख ने कहा कि जरूरत पड़ने पर वह परमाणु हथियार भी इस्तेमाल कर सकता है। कहना न होगा कि मुनीर की बातें जितनी गैरजिम्मेदार हैं, उतनी ही चिंता बढ़ाने वाली भी। इसलिए पाकिस्तानी फन को समय रहते ही कुचल देना चाहिए और रूस-चीन का सहयोग लेकर उन तमाम अमेरिकी एशियाई अड्डों को भारत के कब्जे में कर लेना चाहिए, जिससे पाकिस्तान-बंगलादेश को अमेरिकी खाद-पानी मिलती आई है।
मेरे विचार से यही दूरदर्शी रणनीति होगी। चूंकि ऑपरेशन सिंदूर जारी है, पीओके वापस नहीं मिला है, पाकिस्तानी परमाणु बमों पर अमेरिकी पहरा है, इसलिए आसेतु हिमालय में एक निर्णायक युद्ध के आगाज से नहीं हिचकना चाहिए। बल्कि इसी की आड़ में सारे छोटे छोटे पड़ोसी देशों का अस्तित्व मिटा देना चाहिए, ताकि भारत विरोधी ताकतें हमेशा अपनी औकात में रहें।
यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ कि पाकिस्तान के सिस्टम में सेना क्या भूमिका रखती है, यह सभी को मालूम है। भले ही वहां चुनी हुई सरकार हो, लेकिन फैसले सेना प्रमुख के ही होते हैं। यह कौन नहीं जानता कि नवोदित पाकिस्तान ने 1947 में ही कबाइलियों को आगे करके भारत के मस्तक जम्मू-कश्मीर को वापस लेना चाहा, लेकिन मात खाई। फिर 1965 और 1971 में भारत के हाथों करारी चोट मिली।चाहे 1999 का पाकिस्तानी कारगिल क्षद्म युद्ध हो या फिर 2025 का भारत द्वारा शुरू किया गया आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन सिंदूर, भारत ने पाकिस्तान को जो रणनीतिक मात दी, उससे उसकी अंतरराष्ट्रीय बेइज्जती भी हुई।
इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत विरोधी कुचक्र चलाये रखना और आतंकवादियों को सहयोग देते रहना पाकिस्तान की पॉलिसी की तरह है। इसलिए हमें उसकी परमाणु युद्ध की धमकी से डरना नहीं चाहिए, बल्कि इजरायल की तरह ही ऐसा निर्णायक सैन्य ऑपरेशन चलाना चाहिए कि भारत अपना पुराना पाकिस्तानी भूभाग भी वापस ले ले और उसे उनकी नियति के अनुरूप भारतीय सैन्य शासन के तहत ही हमेशा रखे। ग्रेटर इंडिया के हित में ऐसा किया जाता बहुत जरूरी है। बदलते वक्त की मांग है।
यह ठीक है कि भारत ने परमाणु बम मामले में ‘नो फर्स्ट यूज’ की नीति अपना रखी है यानी वह परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेगा। वहीं, किसी गैर परमाणु शक्ति देश के खिलाफ भी एटमी पावर नहीं दिखाई जाएगी। लेकिन, पाकिस्तान ऐसी किसी नीति से नहीं बंधा हुआ नहीं है जो हम सबके लिए फिक्र की बात है। जबकि मुनीर का मूर्खतापूर्ण अंदाज है कि ‘हम अपने साथ आधी दुनिया को भी ले डूबेंगे’। स्पष्ट है कि यह सबकुछ पाकिस्तान के असुरक्षित एटॉमिक डॉक्ट्रिन का नमूना है। इसलिए एहतियाती सावधानी बरतने में कोई कोर-कसर भी नहीं छोड़ना चाहिए।
सच कहूं तो पाक सेनाध्यक्ष मुनीर का बयान उकसाने वाला और शांति की जारी कोशिशों के खिलाफ है। क्योंकि उनके कथित बाप अमेरिका को यही पसंद है। यह घोर अंतरराष्ट्रीय विडंबना है कि उन्होंने इन बातों के लिए उस जगह को चुना, जिसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आधा दर्जन युद्ध रुकवाने का फर्जी दावा कर रहे हैं और जिनके लिए शांति का नोबेल मांगने वालों में पाकिस्तान भी है। दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने “नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली” जैसा किसी भी युद्ध में अमेरिका के शामिल नहीं होने का जो दावा किया था, उसकी अब पोल खुल रही है। मेरा मानना है कि उनका मकसद है अब अमेरिका सीधे युद्ध नहीं करेगा, बल्कि करवाने में हरसंभव सहयोग करेगा, जैसा कि यूक्रेनी खनिज संपदा हथियाने के लिए वह वहां कर रहा है। ऐसा ही अन्य देशों में भी वह करेगा।
चूंकि अब उनकी नजर पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित बेशकीमती खनिज संपदा पर है, इसलिए अब उसे भारत के खिलाफ उकसा रहे हैं। उन्हें यह भी पता है कि पाकिस्तान अब चीन के शरणागत है। इसलिए उन्हें उम्मीद है कि पाकिस्तान से रिश्ते सुधरते ही चीन के साथ उनके पुराने रिश्ते सुधर जाएंगे। इससे उन्हें भारत-रूस की कूटनीतिक लगाम कसने में सुविधा होगी। इसलिए अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि यह आम बात नहीं हो सकती कि मुनीर दो महीने के भीतर दूसरी बार अमेरिका की यात्रा पर हैं। इन दो महीनों के दौरान दोनों देशों के रिश्तों में काफी बदलाव आया है, क्योंकि ट्रंप को अब इस्लामाबाद के रूप में एक प्रमुख क्षेत्रीय सहयोगी दिख रहा है।
यह कड़वा सच है कि पाकिस्तान को पुनः मजबूत करके भारत पर पुनः हमला करवाने के लिए ही तो ट्रंप ने सीज फायर करवाया था, जैसा कि वो दावे पर दावे करते आये हैं। इसलिए अब पाकिस्तान के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय खलनायक अमेरिका का भी माकूल इलाज सुनिश्चित करवाने का समय आ गया है। इसके लिए भारत को भी कूटनीतिक प्रयास तेज करने होंगे और अमेरिकी दुश्मनों को दिल्ली बुलाकर अमेरिका को सख्त संदेश देना होगा।
यही वजह है कि मुनीर के बयान का भारतीय विदेश मंत्रालय ने सही जवाब दिया है। वह यह कि जिस देश में सेना आतंकवादी समूहों के साथ मिली हो, वहां परमाणु कमांड और कंट्रोल की विश्वसनीयता पर संदेह होना स्वाभाविक है। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय ने यह भी साफ साफ कहा है कि भारत किसी न्यूक्लियर ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी सरकार का यही रुख था। वहीं, अब वक्त आ चुका है कि मुनीर के बयान का इस्तेमाल भारत को पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने और उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए करना चाहिए।
सवाल है कि जैसे इजरायल-अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों को तहस नहस कर दिया, उसी तरह से भारत-रूस पाकिस्तानी परमाणु ठिकानों को भी नेस्तनाबूद करने में आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहे हैं? क्या उनमें दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी है या चीन आड़े आ रहा है? सोचने और निर्णायक कदम उठाने की बात है। यदि इससे तीसरा विश्व युद्ध शुरू भी हो जाये तो डरना नहीं चाहिए। इसमें भारत को इजरायल का साथ भी मिल सकता है।
वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ की घोषणा के बीच सरकार के दो मंत्रालयों के शीर्ष अफसरों ने संसदीय समिति को ब्रीफ किया। जैसा कि समिति के चेयरमैन शशि थरूर ने बताया कि बैठक में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने पैनल को बताया कि अमेरिका से रिश्ता काफी अहम है और व्यापार सिर्फ इसका एक हिस्सा है। क्या ट्रेड डील को लेकर 25 अगस्त को प्रस्तावित बैठक के लिए अमेरिकी वार्ताकार भारत आ रहे हैं? इसके जवाब में थरूर ने कहा कि अब तक की जानकारी के मुताबिक इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। अमेरिका से अभी रिश्ते अच्छे है। मीटिंग में पाकिस्तानी फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के हालिया विवादित बयान को लेकर भी जानकारी दी गई। इसलिए भारतीय प्रशासन को भी ठोक बजाकर आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि प्रेम और युद्ध साथ साथ सम्भव नहीं है।
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक