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पीएम मोदी द्वारा आरएसएस की तारीफ किए जाने के बाद उभरे विपक्षी आलोचनात्मक स्वरों…


देश-दुनिया की सबसे बड़ी अपंजीकृत गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तारीफ जब दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जो और सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की अगुवा पार्टी है, के प्रखर नेता, ओजस्वी वक्ता, पूर्व संघ प्रचारक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से की, तो वह कोई साधारण क्षण नहीं था, बल्कि आरएसएस की स्थापना के शतक वर्ष पर 79वें स्वतंत्रता दिवस समारोह को सम्बोधित कर रहे प्रधानमंत्री के हृदय से निकला उद्गार है। 
वहीं, सियासी रूप से मूढ़ और अकर्मण्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और उसकी सहयोगी समाजवादी पार्टी (सपा) ने जिस तरह से प्रधानमंत्री के आरएसएस सम्बन्धी विचार की खिल्ली उड़ाई, उससे जनसेवा, समाजसेवा व राष्ट्रसेवा के प्रति उनका उपहास बोध उजागर हो गया। ये वही लोग हैं जिन्होंने दलित-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों के शोषण के नाम पर सत्ता हथियाकर सामंती मानसिकता और परिवारवाद की सारी हदें पारकर खुद की सत्ता भी गवां दी। जो समाजवादी कांग्रेस विरोध के नाम पर जनसंघ-भाजपा के सहयोग से सत्ता में आए, राष्ट्रवादी व हिंदुत्व की जनभावना मजबूत होते ही भाजपा के विरोध में कांग्रेस से सांठगांठ कर लिया। वहीं, जो कांग्रेस मुस्लिम लीग विरोधी होने के चलते हिंदुओं के देश भारत की सत्ता पाई, वह जनसंघ/समाजवादियों के बढ़ते प्रभाव से धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटने लगी।

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यही वजह है कि जहां अंग्रेजों द्वारा स्थापित पार्टी कांग्रेस ने इसे आरएसएस को खुश करने वाला कदम बताया। वहीं, कांग्रेस के दम पर मृत जातिवादी समाजवाद को जिंदा कर सकने वाली समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश ने इसे संघी साथियों द्वारा अंग्रेजों को धन्यवाद देने का पल करार दिया। शायद ऐसी सियासी उलटबासी परोसते हुए उन्हें शर्म भी नहीं आई। इसलिए इसके राजनीतिक मायने को हम यहां विस्तार पूर्वक समझा रहे हैं।
पहले प्रधानमंत्री ने क्या कहा, उसे बताते हैं। लाल किले से पीएम मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष (1925-2025) का जिक्र किया और संघ के अवदानों की खुलकर तारीफ की। चूंकि पीएम मोदी का लाल किले से यह 12वीं बार भाषण था, लेकिन इससे पहले कभी भी उन्होंने इस प्रमुख अवसर पर संघ की तारीफ इस तरह से नहीं की थी। जबकि पीएम ने खुलेआम कहा कि संघ का इतिहास समर्पण का इतिहास है। सेवा, समर्पण, संगठन और अनुशासन ही इसकी पहचान रहे हैं। 
पीएम ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की देश सेवा की यात्रा को लेकर इसे दुनिया के सबसे बड़े एनजीओ की तरह बताया और मुक्त कंठ से तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि आज से 100 साल पहले एक संगठन का जन्म हुआ, जिसका नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। यह 100 साल की राष्ट्र की सेवा का एक बहुत ही गौरवपूर्ण स्वर्णिम पृष्ठ है। व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के संकल्प को लेकर स्वयंसेवकों ने मां भारती के कल्याण के लिए जो निज जीवन समर्पित किया है, अतुलनीय कार्य किया है, उसी से मौजूदा भारत का सामर्थ्य दुनिया देख रही है।
यह बात दीगर है कि जहां लोकसभा चुनाव 2024 और उसके नतीजों के बाद बीजेपी और संघ में दूरी दिखी, वहीं पिछले काफी वक्त से पीएम संघ को लेकर अलग-अलग मौकों पर बोले भी और इज़की जमकर सराहना की। इसी साल 30 मार्च को पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी पहली बार संघ हेडक्वॉर्टर नागपुर, महाराष्ट्र भी गए। वहां पर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापकों को श्रद्धांजलि दी। उससे पहले के कुछ महीनों में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने अलग-अलग इंटरव्यू में संघ के काम काज की भरपूर तारीफ भी की, ताकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के बचकाना बयानों से जो दूरियां पैदा हुई और जनमानस में गलत संदेश गया उसकी भरपाई हो सके। 
वहीं, देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लाल किले के प्राचीर से आरएसएस का नाम लेने को संवैधानिक भावना का उल्लंघन बताया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने दावा किया है कि 4 जून 2024 के बाद से पीएम मोदी निर्णायक रूप से कमजोर पड़ गए हैं और 75 साल की उम्र 18 सितंबर 2025 को बीतने के बाद अपना कार्यकाल बढ़ाने के लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की कृपा पर निर्भर है।
कांग्रेस नेता के अनुसार, प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले से आरएसएस का नाम लेना एक संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की भावना का उल्लंघन है। उन्होंने इसे उनके 75वें जन्मदिन से पहले संघ को खुश करने की हताश कोशिश बताया है। 
हालांकि, कांग्रेस की इस छिछली राजनीतिक टिप्पणी पर सियासी गलियारों में यही चर्चा है कि गुड़ खाएं लेकिन गुलगुले से परहेज। यानी कि 2014 से ही आरएसएस के पूर्व प्रचारक भाजपा में आकर उसके मार्गदर्शन से देश चला रहे हैं, नीतियां बदल रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने नाम ले लिया तो संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की भावना का उल्लंघन होगा। सुलगता सवाल है कि क्या ऐसा उल्लंघन तब नहीं हुआ जब 10 जनपथ में बैठकर विदेशी रणनीतिकार डॉ मनमोहन सिंह की नकेल अपने हाथ में रखे हुए थे और उलजुलूल बयान तक दिलवा देते थे? उन्हें खुद आत्मचिंतन करना चाहिए।
रही बात समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की तो उन्होंने शुक्रवार को अप्रत्यक्ष रूप से आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ संगठन अंग्रेजों ने बनाए थे, ताकि ‘भारत’ को धार्मिक आधार पर विभाजित किया जा सके। लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए यादव ने आरएसएस का नाम लिए बिना कहा, ये संघी साथियों का समूह…मैं उन्हें याद दिलाना चाहता हूं कि बीजेपी के गठन के बाद पार्टी प्रमुख बने व्यक्ति ने पहले अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया था कि पार्टी की राजनीतिक विचारधारा समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष होगी। 
फिर अखिलेश यादव बोले, 100 साल पूरे होने पर उन्हें अंग्रेजों को धन्यवाद देना चाहिए। क्योंकि हमने सुना है और इतिहासकारों ने लिखा है कि कुछ संगठन अंग्रेजों ने बनाए थे ताकि भारत को धार्मिक आधार पर बांट सके, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच खाई पैदा की जा सके। इसलिए संघी साथियों, जिनकी पहली विचारधारा समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष है, उन्हें इसे याद रखना चाहिए। हालांकि, ऐसा प्रतीत होता है कि अखिलेश यादव अंग्रेजों को याद करते समय सेफ्टी वॉल्व के रुप में एक ब्रिटिशर्स द्वारा स्थापित पार्टी कांग्रेस को स्मरण करना भूल गए, जिसकी सियासी बैशाखी पाकर मृतप्राय हो चली समाजवादी पार्टी को उन्होंने जिंदा किया।
चाहे कांग्रेस हो या समाजवादी पार्टी, उन्हें आरएसएस की आलोचना से पहले खुद के गिरेबां में झाँककर देख लेना चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि आरएसएस का गठन उसी व्यक्ति ने किया, जिसने कभी कांग्रेस सेवा दल को अपनी सेवाएं दी थी। यानी कि उससे अलग होकर उन्होंने तब ही जता दिया था कि कांग्रेस का भविष्य अंधकारमय है, लेकिन उसके साथ ही भारत का भविष्य भी वैसा ही न हो जाए, इसलिए उन्होंने आरएसएस का गठन किया। आज जब वह और उसका मुखौटा राजनीतिक संगठन भाजपा शीर्ष पर है, तो कांग्रेस कहाँ है? क्यों है? आत्ममंथन का विषय है। 
रही बात समाजवादी पार्टी की तो उसे पता होना चाहिए कि कांग्रेस को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता से बेदखल करने वाली जनता पार्टी के डीएनए में समाजवादी व राष्ट्रवादी एक साथ थे। 1989 में भी उन्होंने एक साथ रहकर कांग्रेस को पुनः अपदस्थ किया। लेकिन फर्जी धर्मनिरपेक्षता और घोर जातिवाद-परिवारवाद का सियासी भूत जब उनलोगों पर सवार हो गया, तब आरएसएस के निर्देश पर ही भाजपा उनसे अलग हुई और मौजूदा बुलंदियां हासिल की।
मेरा कांग्रेस और सपा को विनम्र सुझाव है कि आरएसएस को समझने के लिए उसकी प्रातःकालीन शाखाओं में जाएं और वहां पर चल रही व्यक्तित्व निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्रनिर्माण की निःस्वार्थ कोशिशों को समझें। फिर खुद से पूछें कि क्या कांग्रेस-सपा ऐसी जनमुहिम नहीं पैदा कर सकती? यदि हां, तो फिर सकारात्मक पहल अविलंब शुरू करें। राजद प्रमुख व बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव द्वारा गठित डीएसएस का हश्र सामने है।
फिर भी आपलोगों को अपना व्यक्तिगत अनुभव हासिल कर लेना चाहिए। तभी आपकी समझ में आएगा कि जनसहयोग से आरएसएस ने वह कर दिखाया है, जो सत्ता के तमाम नंगा नाचों से कांग्रेस-क्षेत्रीय दल हासिल नहीं कर पाए। यही आरएसएस-भाजपा की ताकत है। उसके मुकाबिल खड़े होने के लिए अब वहीं से शुरुआत करनी होगी, अन्यथा राजनीतिक बियावान में भटकते रहिए।
स्पष्ट है कि यदि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष का जिक्र कर पहली बार लाल किले से इस संगठन की जो तारीफ की है, वह बहुत कम है। क्योंकि आरएसएस दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ है जो देशवासियों को प्रेरणा देता रहेगा। ऐसा इसलिए कि संघ का इतिहास समर्पण का इतिहास है। सेवा, समर्पण, संगठन और अनुशासन इसकी अमिट पहचान रहे हैं। 
– कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक