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practical implications of the sc order to keep street dogs in dog shelter homes…


माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने गत सोमवार को दिल्ली-एनसीआर के इलाकों से सड़क के कुत्तों को पकड़ने और उन्हें डॉग शेल्टर में रखने का निर्देश दिया है, उसके व्यवहारिक मायने दिलचस्प हैं, जबकि कतिपय नेताओं व पशु प्रेमियों ने इस सुप्रीम आदेश की सड़क छाप मुखालफत शुरू कर दी है। देखा जाए तो यह प्रेम या घृणा का मामला नहीं है, बल्कि वह सामाजिक न्यायिक पहल है जिससे सबका लोकतंत्र सुनिश्चित होता है। खासकर उन बच्चों-बुजुर्गों का जिन्हें इनसे सर्वाधिक खतरा रहता है। इसी भय से कई बार वे अकेले पार्क या पड़ोस में जाने से घबराते हैं।

दरअसल, कोर्ट ने ऐसा आदेश कुत्तों के काटने और रेबीज के खतरे के बढ़ने के मद्देनजर स्वत: संज्ञान लेते हुए उक्त आदेश दिया है। इसलिए वह आलोचना नहीं बल्कि बधाई का पात्र हैं। इससे मीडिया रिपोर्ट्स की गंभीरता और प्रासंगिकता भी परिपुष्ट हुई है। मेरी व्यक्तिगत राय है कि इसका दायरा बढ़ाकर इसमें बंदरों और उन जानलेवा आवारा जानवरों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए।

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सच कहूं तो सभ्य समाज के लिए खतरा बनते जा रहे स्ट्रीट क्रिमिनल्स और स्ट्रीट बायस्ड पॉलिटिकल एक्टिविस्ट, जिनकी लोकल थानों व पुलिस चौकियों से सांठगांठ होती है, यदि इन जैसों के खिलाफ भी ऐसा ही सुप्रीम आदेश निर्गत हो जाए तो सभ्य समाज का भला हो जाएगा। क्योंकि कोई भी लोकतंत्र उन असभ्य लोगों को आजादी का अधिकार नहीं दे सकता, जो कि समाज के अन्य वर्गों के लिए खतरा बनते जा रहे हों। संभव है कि भविष्य में न्यायालय इन विडंबना भरे सामाजिक स्थितियों पर भी गौर करेगा और बेलगाम राजनीतिक व प्रशासनिक हुक्मरानों को समाज के प्रति उसी तरह से संवेदनशील बनाएगा, जैसा कि उसके ताजा निर्णयों से महसूस किया जाता है।

बताते चलें कि अपने आदेश में कोर्ट ने साफ कहा है कि सरकार, एमसीडी और एनडीएमसी को अगले 6-8 हफ्तों में शेल्टर रूम की शुरुआत करनी होगी, क्योंकि यहां स्थिति बेहद गंभीर है। लिहाजा, कुत्तों के काटने की समस्या से निपटने के लिए प्रशासन को तुरंत एहतियाती कदम उठाने की जरूरत है।  लगे हाथ कोर्ट ने पशु प्रेमियों को यह दो टूक चेतावनी भी दे दी है कि अगर कोई व्यक्ति या संगठन इन आवारा कुत्तों को पकड़ने में बाधा डालेगा, तो उसके खिलाफ भी सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। 

वाकई, कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि किसी भी कीमत पर शिशु और छोटे बच्चे रेबीज के शिकार नहीं होने चाहिए। उल्लेखनीय है कि जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने स्पष्ट कहा है कि इस कार्रवाई से लोगों में यह भरोसा पैदा होना चाहिए कि वे बिना डर के स्वतंत्र रूप से घूम सकें, बिना इस भय के कि कोई सड़क का कुत्ता उन्हें काट लेगा। इस प्रकार देखा जाए तो कोर्ट के फैसले की कुछ अन्य अहम बातें इस प्रकार हैं- 

पहला, कोर्ट ने सड़क के कुत्तों को गोद लेने की दलील खारिज करते हुए स्पष्ट कहा है कि सड़क के कुत्ते अचानक पालतू नहीं बन सकते। इसलिए इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है। दूसरा, मानव जीवन और सुरक्षा सबसे पहले है। इसलिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए। तीसरा, रोजाना पकड़े गए और शेल्टर में रखे गए कुत्तों का रेकॉर्ड बनाएं। चतुर्थ, एक सप्ताह के भीतर हेल्पलाइन बनाई जाए, ताकि कुत्ता-काटने के मामलों की रिपोर्ट हो सके।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से पूछा है कि, क्या एनिमल एक्टिविस्ट और ‘कथित पशु प्रेमी’ उन बच्चों को वापस ला पाएंगे जो रेबीज का शिकार हो गए। बता दें कि कोर्ट ने गत 28 जुलाई को स्वत: संज्ञान लेते हुए यह मामला उठाया था, जब एक रिपोर्ट में दिल्ली-एनसीआर में रेबीज के बढ़ते मामलों, बच्चों और बुजुर्गों की मौत पर चिंता जताई गई थी।

वहीं, दिल्ली-एनसीआर में सड़क के कुत्तों को शेल्टर होम में भेजने के आदेश के एक दिन बाद, सुप्रीम कोर्ट ने एक और नया सर्कुलर जारी किया। कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट परिसर में बचे खाने को खुले में न फेंकें। उसे सिर्फ ढक्कन लगे कूड़ेदान में डालें, जिससे कि जानवरों के काटने की घटनाओं से बचा जा सके। सर्कुलर में इस मामले में नोटिस लिया गया कि सुप्रीम कोर्ट परिसर में गलियारों और लिफ्ट के अंदर कुत्तों के घूमने की घटनाओं में ‘काफी’ बढ़त देखी गई है। 

वहीं, यह सबकुछ करते हुए भी कोर्ट की भाषा विनम्र है और उसने विजिटर से भी निर्देश लागू करने में सहयोग मांगा है। जारी सर्कुलर में आगे कहा गया कि बचा हुआ सारा खाना सिर्फ कूड़ेदान में डाला जाए। किसी भी परिस्थिति में खुली जगह या बिना ढक्कन वाले बर्तनों में खाना नहीं फेंका जाना चाहिए। यह कदम जरूरी है, जिससे कि जानवरों (सड़क के कुत्तों) को खाने की गंध से आकर्षित होकर इधर-उधर घूमने से रोका जा सके। कोर्ट ने माना कि इससे काटने की घटनाओं का खतरा कम होगा और परिसर में साफ-सफाई भी बनी रहेगी। सभी आगंतुकों से इस निर्देश को लागू करने में सहयोग को कहा गया है।

बता दें कि यह सब एक स्वस्थ सामाजिक आचरण है, लेकिन जब शिक्षक व प्रशासकों ने अपनी जिम्मेदारी स्वतः न समझी और सामाजिक स्थिति बद से बदतर होती गई तो कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।

उधर, कोर्ट के आदेश पर नेताओं का अलग-अलग नज़रिया सामने आया है। सड़क के कुत्तों को शेल्टर होम भेजने के सुप्रीम आदेश के खिलाफ कई नेताओं, संगठनों और बॉलिवुड सितारों ने आवाज बुलंद की है। एक ओर जहां दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इस फैसले पर साफ कहा है कि सरकार जल्द ही एक स्ट्रीट डॉग नीति लेकर आएगी और योजनाबद्ध तरीके से कोर्ट के आदेश को लागू करेगी, क्योंकि दिल्ली के लोग इससे तंग आ चुके हैं। इसलिए हम इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं, क्योंकि हम लोगों को राहत देना चाहते हैं। चूंकि सड़क के कुत्तों की समस्या विकराल रूप ले चुकी है, इसलिए हम एक नीति बनाएंगे और लोगों को राहत देंगे।

वहीं, दूसरी ओर पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसला की आलोचना करते हुए कहा कि, ‘हमें तो पहले से ही ऐसी ही उम्मीद थी। अब, अगर इस आदेश का पालन किया जाता है, तो दिल्ली में तीन लाख कुत्तों को पकड़कर केंद्रों में रखना होगा। दिल्ली सरकार को 1,000-2,000 शेल्टर रूम बनाने होंगे, क्योंकि बहुत सारे कुत्ते आपस में लड़ेंगे। उन्हें रोकने के माकूल प्रबंध करने होंगे।’ उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले में तार्किक सोच अभाव है।  बीजेपी सांसद गांधी ने इस मामले में पीएम से हस्तक्षेप की अपील की।

जबकि कांग्रेस के नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल और प्रियंका गांधी ने कहा कि इन्हें हटाना क्रूरता है। तृणमूल कांग्रेस ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर इस आदेश पर फिर से विचार की मांग की। वहीं, जॉन अब्राहम ने कहा कि ‘ये कम्युनिटी का हिस्सा है, जिनसे कई लोग लगाव रखते हैं, खासकर दिल्ली के लोग…नसबंदी से इनकी आबादी पर काबू पा सकते है। उल्लेखनीय है कि डॉग लवर्स ने मंगलवार को कनॉट प्लेस पहुंचकर कुत्तों को शेल्टर होम भेजने के फैसले पर नाराजगी जताई और इस सुप्रीम आदेश/ फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की है। पुनः बता दें कि गत सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली-एनसीआर के सभी सड़क के कुत्तों को ‘यथाशीघ्र’ स्थायी रूप से शेल्टर होम में ट्रांसफर किया जाए।

– कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)