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Balarama and Shri Krishna worship tips, Panchamrit, offer butter and sugar candy…


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1 दिन पहले

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भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी की जयंती मनाई जाती है, जिसे हलछठ भी कहते हैं। इस बार ये पर्व 14 अगस्त, गुरुवार को मनाया जाएगा। हलछठ पर्व कृषक समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे बड़े ही श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित मनीष शर्मा के मुताबिक, द्वापर युग में इसी तिथि पर भगवान विष्णु के प्रिय शेषनाग ने बलराम के रूप में अवतार लिया था। बलराम के शस्त्र हल और मूसल हैं। बलराम को उनके कृषि से जुड़े कार्यों और हल के कारण हलधर कहते हैं। इसलिए इस पर्व को हलषष्ठी या हलछठ कहा जाता है।

संतान के सौभाग्य की कामना से किया जाता है ये व्रत

हलछठ व्रत संतान के सौभाग्य की कामना से किया जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। मान्यता है कि बलराम की पूजा से बच्चों को रोग और संकटों से मुक्ति मिलती है। बलराम जी के बारे में कहा जाता है कि वे गदा युद्ध में पारंगत थे। उनके दो प्रमुख शिष्य थे- भीम और दुर्योधन।

महाभारत युद्ध के अंत में जब भीम ने दुर्योधन की जांघ पर गदा से प्रहार करके उसे युद्ध में पराजित किया, तब बलराम इस नियमविरुद्ध आचरण पर बहुत क्रोधित हो गए थे और वे भीम को मारना चाहते थे। उस समय श्रीकृष्ण के समझाने पर ही उनका गुस्सा शांत हुआ। बलराम को धैर्य, बल और नीति का प्रतीक माना जाता है। उनका जीवन एक आदर्श योद्धा और भाई के रूप में देखा जाता है।

पंचामृत से करें अभिषेक

पं. मनीष शर्मा बताते हैं कि हलछठ पर बलराम और श्रीकृष्ण का अभिषेक करने की परंपरा है। इस दिन गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल मिलाकर पंचामृत बनाकर इससे भगवान का अभिषेक किया जाता है। फिर फूल और नए वस्त्रों से श्रृंगार करते हैं। तुलसी, माखन-मिश्री से भगवान को भोग लगाया जाता है।

शनिवार को मनाई जाएगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

हलछठ के दो दिन बाद शनिवार, 16 अगस्त (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का मनाई जाएगी। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था। कई भक्त इस दिन निर्जल व्रत रखते हैं और रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्म का उत्सव मनाते हैं।

जन्माष्टमी पर बाल गोपाल का पंचामृत से अभिषेक, नए वस्त्र अर्पण, फूलों से श्रृंगार और माखन-मिश्री का भोग अर्पित करने की परंपरा है।

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