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Independence Day 2025: स्वतंत्रता दिवस के जश्न में क्यों शामिल नहीं हुए महात्मा…


देश की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था. 15 अगस्त 1947 ही वो दिन था, जब भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ. हालांकि, आजादी के जश्न में महात्मा गांधी शामिल नहीं हुए. उनकी अनुपस्थिति से कई लोग हैरान थे. महात्मा गांधी उस वक्त दिल्ली से हजारों मील दूर बंगाल के कलकत्ता (कोलकाता) में थे, जहां वो हिंदू-मुस्लिम दंगों को शांत कराने के लिए अनशन पर बैठे थे.

उस दौरान जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को पत्र भेजा, जिसमें लिखा था कि 15 अगस्त हमारा पहला स्वाधीनता दिवस है और आप राष्ट्रपिता हैं. इसमें शामिल होकर अपना आशीर्वाद दें. गांधी ने इस खत का जवाब भिजवाया. उन्होंने लिखा कि जब कलकत्ते में हिंदु-मुस्लिम एक दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं. मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा.

आजादी के जश्न में क्यों शामिल नहीं हुए महात्मा गांधी ?
लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लैपियर द्वारा लिखी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में जिक्र किया गया है कि जब पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था, तब गांधीजी बंगाल में भयंकर दंगों को शांत कराने की कोशिश कर रहे थे. वे कलकत्ता के एक मुस्लिम बहुल इलाके ‘हैदरी मंजिल’ में रह रहे थे. उन्होंने बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री एच.एस. सुहरावर्दी के साथ मिलकर शांति की अपील की.

कलकत्ता में कहां रह रहे थे महात्मा गांधी ?
दरअसल हैदरी मंजिल कलकत्ता के एक बेहद पिछड़े इलाके बेलियाघाट में एक मुसलमान का घर था. यहीं पर महात्मा गांधी ने अपना बसेरा बनाया. उन्होंने इतना जोखिम इसलिए उठाया, क्योंकि वो संदेश देना चाहते थे कि वे हर धर्म और समुदाय के साथ खड़े हैं. वे इस बात से बहुत दुखी थे कि जिस अहिंसा के लिए उन्होंने पूरा जीवन संघर्ष किया, उसी की कीमत पर भारत को आजादी मिली.

जब पूरा देश 15 अगस्त 1947 को आजादी का पहला दिन मना रहा था, तब गांधीजी कलकत्ता में अनशन पर थे. उन्होंने किसी भी तरह के उत्सव में हिस्सा लेने से मना कर दिया था. गांधी का मानना था कि जब देश के लोग एक-दूसरे का खून बहा रहे हों, तब वे खुशी नहीं मना सकते. उनके लिए अहिंसा और प्रेम, सत्ता और स्वतंत्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण थे.

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