दिल्ली: 45 दिनों से लगातार यात्रा पर था। 5 दिन लखनऊ फिर 7 दिन बनारस उसके बाद 5 दिन अयोध्या फिर 1 दिन लखनऊ फिर 4 दिन दिल्ली फिर 4 दिन तीर्थन वैली हिमांचल फिर 3 दिन नोएडा फिर 3 दिन गुडग़ांव फिर एक दिन बावल हरियाणा, फिर एक दिन जयपुर पुनः 3 दिन दिल्ली 2 दिन ग्रेटर नोएडा, फिर आजकल गुरुग्राम में।
इधर दिल्ली नोएडा गुड़गांव में इतने रेस्टोरेंट खुल गए हैं कि लगता है जनसंख्या से ज़्यादा रेस्टोरेंट हैं। अधिकतर रेस्टोरेंट में पीक आवर में बैठने की जगह नहीं मिलती। साथ ही हर रेस्टोरेंट में होम डिलीवरी के लिए स्विगी और जोमटो वालों की लाइन अलग लगी है।
पिछले दिनों जब दिल्ली पहुचा तब रात के 2 बज रहे थे, हालांकि मित्र को बोला था कि आ रहा हु लेकिन वह सुबह 8 बजे ही अपने ऑफिस के लिए निकलता है तो इतनी रात को फोन करना उचित नही समझा। इसीलिए पहले से ही रुकने के लिए इस बार ओयो से होटेल बुक करवाया था। पहुँचने पर पता चला होटेल ने बुकिंग कैंसिल कर दी, लम्बी बात चली, समझ यह आया वह ओयो की बुकिंग ले तो लेते हैं, पर बैकप में रखते हैं, यदि सीधे बुकिंग मिल गई तो ओयो वाली कैंसिल कर देते हैं, सब ऑनलाइन हो जाने से अब यह होटेल सौ प्रतिशत से ज़्यादा बुक रहते हैं – तीन वर्ष पूर्व आधे ख़ाली रहते थे तभी ओयो से टाई अप किया था। न चाहते हुए भी मित्र को फोन करना पड़ा।
इधर नए स्टार्टअप्स बहुत चल रहे है बस आपके काम मे जान होनी चाहिए।
मित्र के अपार्टमेंट के पास में गैलेरिया कॉम्प्लेक्स है, महँगी वाली दुकाने हैं अधिकतर दो दिन से चायोस से निराश हो लौट रहा हूँ, बैठ कर चाय पीने की इच्छा नहीं पूरी हो रही है। मेरी चाय पीने की आदत से तो लगभग सभी परिचित है, भाई बहुत चाय पिता हु। लगभग सभी दुकानों पर ग्राहकों की ज़बरदस्त भीड़ है।
इधर स्टार्टअप्स की भरमार है अच्छा कमा रहे है सब अपनी कम्पनी के सीईओ और md है। कुछ लड़के रखे हुए है कम्पनी चल रही है।
इधर इंडस्ट्रियल एरिया में हजारों की संख्या में कम्पनियां है, कोई भी 12th पास लड़के के लिए इधर 12 हजार की जॉब आसानी से मिल जाएगी बशर्ते ज्यादा नखरे न हो उसके। लोग कहते है नौकरी नही है। सब सरकारी के ही पीछे भागोगे तो प्राइवेट कौन करेगा।
बस आपके पास स्किल होनी चाहिए बिनां नखरे के, आपको काम तो यूं मिलेगा।
Ac मकैनिक सीज़न में मिलता नहीं, पेंटर से लम्बे समय बाद बुकिंग लेनी पड़ी है अड्वैन्स में, अपने घमंड को जेब में डाल कर,
बनारस वाले घर में सोलर ग्रीड लगवानी थी, ठेकेदार के पीछे दौड़ना पड़ा, सिफ़ारिश सी लगानी पड़ी कि पहले मेरा काम कर दे जल्दी।
इधर दिल्ली मेट्रो में आ जाइए लाखों युवा भागते मिलेंगे कोई फ़ुर्सत में ना दिखेगा, कल मित्र के घर गया, खाना बनाने वाली चार घर में खाना बनाकर बीस हज़ार कमाती है, उससे बात की तो पता चला अब उसे गाँव ससुराल पसंद नहीं आता, माँ बेटी पूरा घर मिल महीने में सत्तर पछत्तर हज़ार बना रहे हैं।
और फिर सोसल मीडिया और वामपंथियो का एक group को सदैव रुदन में देखता हूँ, बड़ी मंदी है, नौकरियाँ नहीं हैं। सरकारी चपरासी की नौकरी मिल जाए बहुत है, सरकारी स्वीपर भी चलेगी, लोग कहते है मंडी है ऑटो सेक्टर में
अबे घण्टा मंडी है औटो सेक्टर में मेरा मित्र सुजुकी में लाइन सुपरवाइजर है बताता कि पहले मेरी लाइन पे 1500 हार्नेस एक दिन में बनती थी अब तो 2300 का टारगेट है, इतना तो रोज बनाना ही है 4 घण्टे ओवरटाइम करता है रोज लड़को की हायरिंग चल रही है।
अभी एक रॉयल एनफील्ड लेने जाओ नही मिलेगी बुक करो एक महीने बाद मिलेगी। स्कोर्पियो या इनोवा लेने जाओ 2 महीनों बाद नम्बर आएगा, कहा मंदी है भाई ?
इसी मंदी का हवाला देकर जिस पार्लेजी ने अपने कर्मचारियों को निकाला वही इस तिमाही में 16% सुद्ध मुनाफा कमाने वाली कम्पनी है।
हाँ एक बात है कि निःसंदेह नोट बंदी से नगद ब्लैक मार्केट में चलने वाला सेक्टर प्रभावित हुआ, Gst से भी वह सेक्टर प्रभावित हुआ, होना ही था, इसके साथ सहानुभूति चूतिये ही व्यक्त कर सकते हैं, हर समझदार को मालूम है ऐसे फ़ैसले कुछ समय के लिए सुस्ती देते हैं कुछ सेक्टर में, पर वहीं ढेरों अन्य सेक्टर हैं जहाँ ज़बरदस्त ग्रोथ है, अभी भी भारत पाँच प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, ऐसी वाइब्रेंट इकॉनमी में यदि आपको एक अदद रोज़गार ना मिल रहा हो तो शायद आप ग़लत जगह रोज़गार ढूँढ रहे हैं, अपने अंदर झाँकने की ज़रूरत है आपको।
स्किल डेवलप करिए ज्यादा नखरे न करिए मेहनत करने के लिए तैयार होइए तो नौकरी क्या छो..री भी झक मार के आपके पास आएगी।
(ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं, यह लेख पार्थ दीक्षित जी द्वारा लिखा गया है)