अतुल शर्मा
चीन लगातार भारत की सीमा पर कुछ न कुछ विवादित करने की कोशिश करता रहा है। यह चीनी सरकार की बहुत पुरानी नीति रही है। इस बार चीन की बढ़ी हुई बेचैनी की वजह कुछ अलग है। हालांकि चीनी फौज का यह एक विशेष और पारंपरिक तरीका यह रहा है कि रेंगते हुए आगे बढ़ना और विवादित गतिविधियों के जरिए इलाक़ों को धीरे-धीरे अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल कर लेना। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत में इसके विकल्प बहुत कम हुए हैं। इसका कारण यह है कि अब भारतीय सीमाओं का विकास पहले से बेहतर और रणनीतिक रूप से आक्रामक हो रहा है। पिछले पाँच वर्षों में भारतीय सीमाओं को बेहतर बनाने पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है जिसका परिणाम चीन ने पहले भी देख लिया है।
पहले भी सीमाओं पर दोनों सेनाओं के सैनिकों में छोटी-मोटी झड़पें होती रहती थीं। डोकलाम के पहले भी 2013 और 2014 में चुमार में कई बार ऐसी घटनाएँ सामने आई थीं। लेकिन इस बार की गतिविधियों का दायरा काफी बड़ा है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बढ़ती चीनी गतिविधियों का बड़ा कारण पुल और हवाई पट्टियों का निर्माण है, जिसकी वजह से सीमा पर भारतीय गश्तों में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी हुई है, जो चीन की स्वाभाविक रणनीति के विपरीत है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जब भारत ने जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म कर दो नए केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में नक्शे में जगह दी है। ऐसे में चीन इस बात से खुश नहीं था कि लद्दाख के भारतीय क्षेत्र में अक्साई चिन को भी शामिल किया गया है। यह चीन की मानसिकता के विपरीत था। चीन कभी भी इस तरह की उम्मीद नहीं किया था। कि भारत अचानक ऐसा कर देगा।
इन सबसे हटकर चीन की सबसे बड़ी समस्या उसकी अंदरूनी है, जिस पर समान्यतः लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है। आज चीन अनेक कारणों से आर्थिक समस्याओं के दौर से गुजर रहा है। चीन में सरकार की भरपूर कोशिश के बावजूद बड़े पैमाने पर कारोबार बंद है। बेरोज़गारी लगभग 32% तक बढ़ गयी है, जो चीन जैसे देश के लिए बहुत बड़ी चिंता का कारण है। 1989 के तियानानमेन चौक में हुए छात्र आंदोलन के बाद पहली बार चीन के भीतर से इस तरह की आवाज उठ रही है। लोग सरकार से बहुत गहरे नाराज हैं। कोरोना पर चीन के विसिल ब्लोअर डॉ लीं वेनलीयंग की मौत के बाद चीनी जनता आजादी से बोलने की बात कर रही है। चीन अंदर से उबल रहा है और इन सबसे दुनिया का ध्यान हटाने के लिये चीन भारत सहित वियतनाम, ताइवान और हॉंगकॉंग के साथ उलझ रहा है, ताकि चीनी नागरिकों का ध्यान देश की आंतरिक और वास्तविक समस्याओं से हट जाये। इस बार अगर भारत की सेना के साथ हम सब मिलकर चीनी समान और कंपनियों का बहिष्कार करें तो पुरी दुनिया हमारा साथ दे सकती है। यह एक ऐसा युद्ध है जो चीन की आर्थिक दृष्टि से कमर तोड़ सकता है।
वर्तमान समय में भारत और चीन के बीच का व्यापारिक घाटा लगभग 4.2 लाख करोड़ भारत के पक्के है।हम चीन से हर साल लगभग 5.2 लाख करोड़ का सामान ख़रीदते हैं और लगभग 1.2 लाख करोड़ का समान चीन को बेचते है। यह सोचने और समझने की बात है कि बाइटडांस के स्वामित्व वाला टिकटॉक 46.70 करोड़ के साथ पहले से ही यूटूब को पछाड़ते हुए भारत में सबसे लोकप्रिय ऐप में से एक बना हुआ है। शाओमी हैंडसेट सैमसंग स्मार्टफोन्स से बड़े हैं। हुआवे राउटर व्यापक रूप से भारत में उपयोग किए जाते हैं। अली बाबा बिग बास्केट, बाइजू, डेल्ही, ड्रीम 11, फ्लिपकार्ट, हाइक, मेकमायट्रिप, ओला, ओयो, पेटीएम, पेटीएम मॉल, पॉलिसीबाजार, क्विकर, रिविगो, स्नैपडील, स्विगी, उदान, जोमाटो जैसी कंपनियाँ भारत में पैसा कमाकर चीन ले जाती हैं और फिर वही पैसा चीन की सेना को पहुँचता है, जिससे चीन भारत से लड़ने का दम भरता है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हम चीन की मदद कर रहे हैं और वह भी भारत के ख़िलाफ़। इस बार हम सब मिलकर चीन के सामानों का, तमाम चीनी एप का और चीन से जुड़ी तमाम चीजों का बहिष्कार करें तो आर्थिक स्तर पर चीन की 3 से 6 महीने में कमर टूट जायेगी। चीन का आर्थिक रूप से कमजोर होना ही चीन के विस्तार-वाद को रोक पायेगा, क्योंकि चीन या तो पैसों से या फिर कृत्रिम वायरस से दुनिया पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है।
इन सबके बाद भारतीय देवी-देवता वापस भारतीय हो जायेंगे। होली का रंग भारतीय होगा और दिवाली वापस भारतीय दीयों से मनाई जायेगी। भारत जब इस तरह की रणनीति को व्यापक स्तर पर लागू करेगा तो चीन की हर लड़ाई जीत जाएगा। इसके सफल होने की उम्मीद भी इसी समय की जा सकती है। इस सरकार ने व्यापक जनभावनाओं को आवाज़ दी है। अनेक अभियान चलाये हैं जिसका व्यापक असर आम जनमानस पर पड़ा है और लोगों ने हर कदम पर सरकार का साथ दिया है। एक बार फिर सरकार को चीन के विरुद्ध जन भावनाओं के खड़ा करना चाहिए और चीनी अर्थव्यवस्था के विस्तार पर भारत में पूर्णतः प्रतिबंध लगाना चाहिए।
(लेखक अवध इंटरनेशनल फ़ाउंडेशन के संस्थापक हैं)