मोहनलालगंज: -देश के विकास में मील का पत्थर साबित हो रही महत्वाकांक्षी मनरेगा योजना जो कि एक पारदर्शी एवं भ्रष्टाचार मुक्त योजना है।
क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे कर्मचारियों को प्रायः कई कई महीनों तक मिलने वाला अल्प मानदेय नहीं मिलने के बावजूद योजना को आगे बढ़ाने में तत्पर कर्मचारियों को लेकर अब तक सरकारों की तरफ से उपेक्षा ही मिलती रही है।
मनरेगा एक ऐसी योजना है जो केंद्र सरकार द्वारा 2005 में प्राम्भ और प्रायोजित और राज्य सरकार द्वारा 2006 से किर्यान्वित कराई जा रही है।
इस योजना में 38000 ग्राम रोजगार सेवक, 5000 तकनीकी सहायक, 700 अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी(APO) सहित अन्य सहायक कर्मियों की नियुक्ति 2008 से 2010 के बीच की गई थी।
उक्त कर्मियों ने अपने करियर के रूप में इस योजना को इसलिए चुना ताकि वे समाज के गरीब, वंचित, संवेदनशील लोगों के मध्य रहकर उनके उत्थान के लिए काम करेंगे और अपने परिवारों का भी पेट पालेंगे।
गत 3 वर्षों से उक्त कार्य मे लगे लोग स्वयं संवेदनशील हो चुके हैं। उनको अपने परिवार चलाने हेतु दिया जाने वाला पारिश्रमिक (जो उनकी कार्यकुशलता और दायित्व की तुलना में बहुत कम निर्धारित है) या तो मिल ही नही रहा या बहुत विलंब से मिल रहा है।
लिए जाने वाले कार्य दिन पर दिन बढ़ते जा रहे है। मनरेगा योजना नित नए प्रयोगों के कारण अपने आप मे एक अनूठी योजना बन चुकी है और नए प्रयोगों को लॉन्च करना एकमात्र इन्ही कर्मियों का दायित्व बनता है।
विडम्बना ये कि प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई मानव संसाधन नीति इन कर्मियों पर लागू नही है
12 साल से दिन रात काम कर रहे इन कर्मियों को कोई मानवीय लाभ (अवकाश, भविष्य निधि, बीमा, इत्यादि)देने के समय इनका मूल विभाग ग्राम्य विकास ही इनको अपना कार्मिक नही मानता जबकि सभी प्रकार के कार्य (ग्राम्य विकास की सभी योजनाओं यथा मनरेगा, nrlm, आवास एवम अन्य विभागों के कार्य भी) करना इनकी नैतिक जिम्मेदारी मानी जाती है।
मोहनलालगंज से राजकिशोर शुक्ला की रिपोर्ट