मोहन लाल गंज विकास खंड क्षेत्र में कुओं का अस्तित्व मिटता जा रहा है , कही कूड़ा का ढेर बने तो कहीं शो पीस ,तो कहीं कुओं को मंदिर का रूप दे दिया गया , लगभग पूरे क्षेत्र में कुओं की जगह इंडिया मार्का टू हैंडपंपों ने ले लिया ।पूरे तहसील क्षेत्र में पुराने कुओं का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है पूर्वजों ने जो कुएं बावली बनवाए थे तो क्या ऐसे ही नहीं इन्हीं कुओं के स्वच्छ पानी से अपना स्वास्थ्य जीवन यापन करते थे फैशन का जलवा कहे या फिर समय के अनुसार पानी की मांग बढ़ने पर इंडिया मार्का टू हैण्ड पम्प लगने लगे तो कुओं का अस्तित्व मिटने लगा , कही पेड़ो की पत्तियों के गिरने से तो कहीं आस पास के रहने वाले लोगों की वजह से गंदगी फैलने के कारण कुओं कि जरूरत समाप्त होने लगी , दर्जनो पंचायतो व उनके मजरों में हजारों की संख्या में कुएं है , लेकिन आलम ये है कि कुओ का पानी दूषित हो जाने के चलते ग्रामीणों ने मज़बूरन उनका उपयोग करना बंद कर दिया और इंडिया मार्का टू हैण्ड पम्प का पानी पीने लगे , जिसका खामियाजा ये हुआ कि अधिकतर कुएं ग्रामीणों ने पाट दिए और उनको अपने कब्जे में ले लिया और उन जगहों पर पहले उपले पाथने का काम शुरू हो गया बाद में कोठरी बना ली या फिर कुओं के ऊपर मंदिर बने है । अभी भी सैकड़ो की संख्या में गांवो में कुएं है जो सूखे पड़े है , और जिनमे पानी भी है उनका इस्तेमाल न होने के कारण व साफ सफाई न होने के चलते धीरे धीरे वो भी अवैध कब्जेदारी के कारण बन्द हो गए ।
हम सबके बुजुर्ग व परिवार के लोग कुओं का पानी पीकर पले बढ़े है । अब भले ही मिनिरल वाटर का प्रयोग हो रहा है , इंडिया मार्का टू हैण्ड पम्प के पानी से जहर निकल रहा है ,जो पीने लायक नहीं है, लेकिन पहले कुओं का पानी पीकर लोग बीमार कम होते थे लेकिन आज जो स्थिति है , वो किसी से छुपी नही है । बशर्ते समय रहते प्रशासन ने बचे खुचे कुओ को बचाने की कोशिश नहीं की तो आने वाले समय में पानी के संकट से सभी का जूझना तय है शादियों में भी कुआं पूजन का प्रचलन है कुआं न रहने पर धीरे धीरे समाप्त हो जाएगा , पंचायत द्वारा उनका कायाकल्प नही करवाया गया तो आने वाली पीढ़िया सिर्फ टीवी में ही उनका दर्शन कर सकेगी , उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले कुछ वर्षों में कुओ का नामो निशान मिट जाएगा । इसलिए कुओ के अस्तित्व को बचाने के लिए प्रशासन को कड़े कदम उठाने चाहिए ताकि कुओं का अस्तित्व बरकरार रह सके ।
शिव बालक गौतम की रिपोर्ट